एयरलाइंस में क्या महिला कर्मचारियों पर प्रेज़ेन्टेबल दिखने का ज़्यादा दबाव होता है
यूक्रेन की बड़ी बजट एयरलाइंस में से एक स्काईअप एयरलाइंस की महिला क्रू सदस्य अब पेन्सिल स्कर्ट, ब्लेज़र और हाई हील की जगह आरामदेह ड्रेस या पोशाक, पैंट-सूट्स और स्निकर्स में नज़र आएंगी.
हालांकि एयरलाइंस ने पोशाक के रंग में कोई बदलाव नहीं किया है और ये नई ड्रेस पहले की तरह नारंगी रंग की ही होगी.
इस एयरलाइंस की एक महिला क्रू दारिया सोलैमानया ने बताया, "कीव से ज़ैन्ज़िबार आना और फिर जाना, 12 घंटे पैरों पर खड़े ही रहते हैं. और अगर आपने हाई हील पहनी है तो आप उसके बाद आप बमुश्किल ही चल पाते हैं. सफर के आलावा इसमें चार घंटे की सुरक्षा जांच और साफ़-सफ़ाई भी शामिल है."
स्काईअप एयरलाइंस यूरोप की कम बजट वाली लेकिन यूक्रेन की बड़ी एयरलाइंस में से एक है.
अगले महीने से स्काईअप एयरलाइंस के क्रू सदस्यों के लिए पुरानी ड्रेस बदल जाएगी और अब वो ज़्यादा आरामदायक ड्रेस में नज़र आएंगी.
दसअसल जब स्काईअप ने अपने क्रू सदस्यों के बीच सर्वे किया तो पाया कि महिला कर्मचारी हाई हील, टाइट ब्लाउज़ और पेन्सिल स्कर्टस पहनकर परेशान हो चुकी थी.
इनमें से कईयों ने हाई हील की वजह से पैरों की उंगलियां और नाख़ूनों के ख़राब होने की शिकायत की थी.
पुरुषों की आकांक्षा क्यों पूरी करे महिलाओं की ड्रेस?
दिल्ली में रहने वाली सुल्ताना अब्दुल्ला ने एयर इंडिया में 20 साल की उम्र में काम करना शुरू किया था. उन्हें केबिन क्रू का 37 साल का अनुभव है.
वो कहती हैं कि विमान से आना-जाना एक समय में ग्लैमर से कम नहीं था लेकिन अब इसे सामान्य तौर पर बस एक मोड ऑफ़ ट्रांस्पोर्ट या यात्रा के ज़रिए की तरह ही देखा जाता है तो क्यों नहीं इस सेवा में काम करने वाले भी कम्फर्ट या आरामदायक ड्रेस पहनें. वो सवाल करती हैं, "पुरुषों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वो स्कर्ट और हाई हील ही क्यों पहनी जानी चाहिए."
वो आगे कहती हैं कि ये बात सही है कि एक महिला से उम्मीद की जाती है कि वो फिट और प्रेस्नटेबल दिखें लेकिन पुरुष अपनी तोंद के साथ भी काम कर सकता है.
अपना अनुभव साझा करते हुए वो कहती हैं कि उनके ज़माने में महिला क्रू सदस्य साड़ियां और फ्लैट चप्पल पहनती थीं जो काफ़ी खुबसूरत होती थीं. इनमें बनारसी, जंगल प्रिंट, क्रेप, सिंथेटिक और बॉर्डर वाली साड़ियां होती थी. लेकिन लंबे सफर में उन्हें साड़ियों में मुश्किल भी होती थी.
बीबीसी से बातचीत में सुल्ताना बताती हैं, "शुरुआत में साड़ी पहनकर चलने में दिक्कत आई थी लेकिन फिर हमें इसकी आदत पड़ गई. सवेरे तीन बजे उठकर आप छह यार्ड की साड़ी को पिन-अप करके पहनते हैं तो टॉयलट जाने में परेशानी होती थी. लंबे सफर में आप उसी में बंधे हैं और अगर चेंज भी किया तो एक घंटा उसे दोबारा सलीके से पहनने में लग जाता था. फिर आप अगर इंग्लैंड, रूस या जापान जैसे देशों में उतर रहे हैं तो चप्पल और साड़ी में आपकी हालत ख़राब हो जाती थी."
हालांकि वो बताती हैं कि बाद में चूड़ीदार और विकल्प के तौर पर उन्हें काले जूते भी दिए जाने लगे.
वो याद करती हैं, "मेरे एयरलाइंस में भर्ती होने से पहले की बात है. उस वक्त फर्स्ट क्लास केबिन क्रू की ड्रेस अलग होती थी जहां एयरहोस्टस लहंगे और चांदी के आभूषणों में होती थीं जो काफ़ी सुंदर होता था."
साड़ियों में थी सुंदरता
मीता जोशी, सुल्ताना अब्दुल्ला की इस बात पर सहमत दिखती हैं. वो कहती हैं कि वो जब भी विदेश जाती थीं लोग साड़ी पहने इन क्रू सदस्यों को मुड़कर देखते थे और उनके साथ फ़ोटो भी खींचवाते थे.
मीता जोशी ने साल 1985 में एयर इंडिया में काम करना शुरू किया था. उस वक्त को याद करते हुए वो कहती हैं, "हमारी ट्रेनिंग बेहतरीन थी और हमें सिखाया गया था कि 'पैसंजर इज़ आलवेज़ राइट, उनसे बहस नहीं करनी है."
वो ज़ोर देकर कहती हैं कि "यूनिफ़ॉर्म होना बेहद ज़रूरी है और उन्हें हमेशा से साड़ी ग्रेसफुल या सुंदर लगती है."
मीता जोशी बताती हैं, "जब हम साड़ी पहनते थे तो ब्लाउज़ और साड़ी इस अंदाज़ में पहननी होती थी कि कहीं से शरीर का कोई अंग ना दिखे. हालांकि महिला क्रू सदस्यों को साड़ी पहनने से दिक्कत होती थी. बाद में हमें कुर्ती और ट्राउसर दिए जाने लगे जो एक तरह से फ़्यूज़न लगता था. मुझे साड़ी बेहद पसंद थी."
सुलताना अब्दुल्ला महिलाओं को इस पेशे में प्रेस्नटेबल दिखने के दबाव की बात करती हैं, तो मीना का कहना कि साड़ी इस तरह पहनी जाती थी कि शरीर का कोई अंग ना दिखे. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए अमीर सुल्ताना कहती हैं कि कभी कोई घटना होती है तो एयरहोस्टस से उम्मीद की जाती है कि वो यात्रियों की जान बचाने के लिए भागे.
वो सवाल करती हैं कि जो महिलाएं लंबे समय तक अपने पैरों पर खड़ी रहती हैं उनकी ड्रेस आरामदायक क्यों ना हो?
वो कहती हैं, "क्या वो साड़ी पहनकर ये सब कर पाएंगी? स्कर्ट या स्लिट वाली स्कर्ट के नीचे स्टॉकिंग बेशक हो लेकिन उनके ड्रेस कोड के बारे में ज़रूर सोचना चाहिए. कई बार उन्हें सामान रखने के लिए ऊपर हाथ उठाना होता है या फिर झुककर कोई सामान निकालना होता है, ऐसे में उनके लिए काफ़ी असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है. ऐसी स्थिति को लेकर वो सजग भी रहती हैं. और तो और हाई हील्स का रीढ़ की हड्डी पर भी असर पड़ता है उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए."
डॉ अमीर सुल्ताना पंजाब यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ़ विमेन स्टडीज़ में स्नातकोत्तर और शोध छात्रों को पढ़ाती हैं.