*सरकारी स्कूलों की दर्ज संख्या कम होने के लिए शासन खुद्द जीम्मेदार: शेंडे निजी स्कूलोक की पढाई मध्यम वर्ग के लिये मुश्किल*

*सरकारी स्कूलों की दर्ज संख्या कम होने के लिए शासन खुद्द जीम्मेदार: शेंडे    निजी स्कूलोक की पढाई मध्यम वर्ग के लिये मुश्किल*

*सरकारी स्कूलों की दर्ज संख्या कम होने केलिए शासन खुद जिम्मेदार : शेंडे                                                              निजी स्कूलों की पढाई मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल*                                                                                                                        बी .पी. एस लाईव्ह न्युज दिल्ली                                          सौसर:-मध्यप्रदेश शिक्षक संघ के पूर्व जिलाध्यक्ष एस.आर.शेंडे ने बताया कि,सरकार की उदासीनता एवं शिक्षा में समुचित बजट के अभाव में प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था दम तोड़ रही है।कई स्कूल खंडहर बने हैं तो कई स्कूलों में कमरों की कमी है।शिक्षकों का अभाव आम बात है आधे से ज्यादा स्कूल अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रहे है। छात्रों को आधा सत्र बीतने तक पाठ्यपुस्तकें,छात्रवृत्ति नहीं मिलती।साइकिलें सडती रहती है ।गणवेश महीनों तक नहीं मिलता। शालाओं में मैदान शौचालय बिजली पानी वाचनालय की समस्याएँ अलग है।आर टी ई के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश देरी से मिलता है। ग्रामीण इलाकों की स्थिति चिंताजनक है । मध्यान्ह भोजन में समय बर्बाद होता है। लगता है पाठशाला नहीं ये पाकशाला है। पालक अगर पोषण आहार के लिए बच्चों को स्कूल भेजते तो स्कूल खाली नहीं होते।वें चाहते है कि, उनके बच्चे अच्छे से पढे । ये वहीं बेसिक स्कूल है, जहाँ बच्चों की चहलकदमी से गुलजार हुआ करते थे।कक्षा में बैठने की जगह कम पड़ती थी ।शिक्षकों को कई सरकारी कार्यों में संलग्न किया जाता है। रिटायर मेन्ट तक भी प्रोमोशन नहीं मिलता।फिर भी अभावों के चलते शिक्षक अपनी सर्वोत्तम प्रतिभा से अध्यापन करता है।पर जब रिजल्ट कम आनेपर उसे ही दोषी ठहराया जाता है। सर्व शिक्षा अभियान की अनदेखी हो रही है। श्री शेंडे ने कहा कि ,यही बेहाल तकनीकी,चिकित्सा व उच्च शिक्षा के है।कई कॉलेज अतिथि विद्वानों के भरोसे चल रहे है।वर्षों से प्रोफ़ेसरों की भर्ती नहीं हुई है।एकलव्य ,सी एम राईस, सेंट्रल स्कूलों, छात्रावासों के यही बुरे हाल है। कमोबेश यह स्थिति पूरे भारत में है। इस तरह शासन की अदूरदर्शिता के चलते मध्यम वर्गीय पालक गण महंगाई के इस दौर में महंगे निजी स्कूलों में बच्चों को पढाने के लिए मजबूर है। जगह जगह नियम बाह्य निजी संस्थाओं को मान्यता देकर सरकार खुद शिक्षा का निजीकरण करने की फिराक में है। महाराष्ट्र में भी जिला परिषद द्वारा संचालित व शासकीय अनुदानित शालाएं इसी वजह से बंद होने की कगार पर है। अतः शासन को चाहिए कि,कम दर्ज संख्या वाले सरकारी स्कूलों को बंद कराने के बजाय सभी स्कूल कॉलेजों को सुसज्जित करें। पालकों को निजी संस्थाओं के शोषण से मुक्ति दिलाएं ।जनप्रतिनिधि व पालक गण इस भर्राशाही के खिलाफ आवाज उठाएं ।