कावड़ यात्रा
कावड़ यात्रा एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ यात्रा है जो मुख्य रूप से भारत में ही संपन्न होती है। यह यात्रा महादेव शिव के भक्तों द्वारा की जाती है और उनकी पूजा-अर्चना का एक अहम हिस्सा मानी जाती है। यह यात्रा साल में एक बार अवश्य ही किसी न किसी तिथि पर होती है, जो सोमवार को श्रवण मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है।
इस यात्रा के दौरान, कावड़ी (Kāvaḍī) नामक व्रतधारी शिव भक्त भगवान शिव के मंदिर तक जाते हैं। कावड़ी एक प्रकार का स्थूल यंत्र होता है जो दो धाराओं पर धारण किया जाता है और जिसे यात्री स्वयं उठाए रखते हैं। इसे उठाने के पश्चात् यात्री चलते रहते हैं और शिव मंदिर में जाकर इसे स्थापित करते हैं। कावड़ यात्रा की शुरुआत आदिगंगा या हरिद्वार से होती है, जहां से भक्त अपने कावड़ लेकर चल पड़ते हैं। कावड़ एक विशेष प्रकार का प्रभावी धारणी होता है, जो भक्त शिव की पूजा के लिए यात्रा के दौरान अपने ऊपर साधारणतः कांच के डिब्बे में रखते हैं। यात्रा के दौरान भक्त किसी भी उच्च स्थान पर अवस्थित मंदिर या शिवालय तक अपने कावड़ को निभाने के लिए पैदल चलते हैं।
यह यात्रा प्राचीन काल से चली आ रही है और धार्मिक आधारों पर महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में मनाई जाती है। कई लाखों शिव भक्त इस यात्रा में हिस्सा लेते हैं और पैदल यात्रा के दौरान शिव के नाम का जाप करते हुए चलते हैं। यात्रा के दौरान, भक्त विशेष व्रत और तपस्या अपनाते हैं। वे अपने भक्ति और श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं, जो शिव को समर्पित होता है। भक्त बर्फ से धाक लिए हुए शिवलिंग को अभिषेक करते हैं और पवित्र गंगाजल से उसे स्नान कराते हैं। यह यात्रा कई दिनों तक चलती है और भक्त अपने ग्रहण तिथि तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करते हैं। कावड़ यात्रा के दौरान, भक्तों की संख्या बहुत अधिक होती है और वे आम तौर पर समूहों में यात्रा करते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन भी है। यात्रा के दौरान भक्त एक-दूसरे की मदद करते हैं, वारदातों को साझा करते हैं और धार्मिक गीतों और भजनों का आनंद लेते हैं।
कावड़ यात्रा का परंपरागत आयोजन पवित्र गंगा नदी के किनारे होता है। यात्री गंगा जल लेकर शिव के मंदिरों पर अर्चना करते हैं और भगवान शिव के लिए भक्ति भाव से प्रार्थना करते हैं। कई यात्री इस यात्रा के दौरान तपस्या करते हैं, जैसे कि व्रत रखना, व्रतधारण करना, दूसरों की सेवा करना आदि।
कावड़ यात्रा का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसे महाभारत काल से जोड़ा जाता है। यह कहा जाता है कि महाभारत के समय भी लोग शिव की पूजा के लिए यात्रा करते थे। आधुनिक समय में, कावड़ यात्रा बहुत प्रसिद्ध हो गई है और इसे हजारों भक्त हर वर्ष करते हैं।