पद्मश्री रशीद अहमद कादरी 500 साल पुरानी बिदरी कला के रक्षक !!

पद्मश्री रशीद अहमद कादरी 500 साल पुरानी बिदरी कला के रक्षक !!

पद्मश्री रशीद अहमद कादरी 500 साल पुरानी बिदरी कला के रक्षक !!

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ब्युरो रिपोर्टर - वाहिद शेख

कर्नाटक : जहां के हर हिस्से में एक अलग कला, संस्कृति, लोककला और भाषा बसती है, उसी भारत के एक राज्य कर्नाटक के बिदर शहर में पाई जाती है लगभग 500 साल पुरानी एक ऐसी शिल्प कला जिसे 'बीदरी कला' कहा जाता है। इस अद्भुत कारीगरी को गुरु रशीद अहमद और उनके पुरखों ने सदियों से ज़िंदा रखा हुआ है।

रशीद इसके इतिहास के बारे में बताते हुए कहते हैं कि भमन शाह गंगू, जो कि अलाउद्दीन बहमन शाह के नाम से प्रसिद्ध थे, उनके शासन के दौरान ईरान का एक कारीगर अब्दुल बिन खैसर बीदर आया था। उस समय बीदर का एक किला बन रहा था। अब्दुल बिन खैसर किला निर्माण के दौरान पत्थर और लोहे में सोना व चांदी की कारीगरी करता था। फिर, उस समय बीदर में सोने से आभूषण बनाने वाले कारीगरों ने भी उस तकनीक को बारीकी से समझ लिया और इसको कला के रूप में विकसित कर दिया। इसे आज बीदरी आर्ट के रूप में जाना जाता है।

बीदरी आर्ट की कृतियां जिंक और कॉपर से बनाई जाती हैं। इसमें चांदी का सीतेमाल भी होता है। कौन-सा मेटल इसके लिए सबसे सही रहेगा, इसका पता कारीगर जीभ से मेटल को छूकर लगाते हैं। कोई भी कलाकृति बनाने से पहले नमूना या डिज़ाइन बनाया जाता है। बीदरी की कृति बन जाने के बाद उस पर तेल की परत लगाई जाती है, जिससे उसका रंग गहरा हो जाता है।

वाह ! ऐसी सुंदर और अनमोल कलाएं ही भारत की धरोहर हैं।